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Tuesday 19 August 2025 04:10:04 PM
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला से प्रेरणाप्रद बातचीत हुई। शुभांशु शुक्ला ने कहाकि उनकी यह उपलब्धि देश केलिए बड़ी सफलता है और आजके भारत को अब केवल सपने देखने की ज़रूरत नहीं है, वह जानता हैकि अंतरिक्ष में उड़ान संभव है, इसके लिए विकल्प मौजूद हैं, अंतरिक्ष यात्री बनना संभव है। उन्होंने प्रधानमंत्री से एक्सिओम-4 मिशन और अंतरिक्ष स्टेशन के रोचक अनुभव साझा करते हुए कहाकि उनके लिए अंतरिक्ष में भारत का प्रतिनिधित्व करना एक शानदार अवसर था और अब यह उनकी ज़िम्मेदारी हैकि वे और अधिक लोगों को इस मुकाम तक पहुंचने में सहायता करें। शुभांशु शुक्ला ने प्रधानमंत्री को एक्सिओम-4 मिशन के दौरान अंतरिक्ष स्टेशन से ली गई पृथ्वी की तस्वीरें दिखाईं। प्रधानमंत्री ने शुभांशु शुक्ला की अंतरिक्ष यात्रा के रोचक और परिवर्तनकारी अनुभव की चर्चा करते हुए कहाकि इतनी महत्वपूर्ण यात्रा करने केबाद व्यक्ति को बड़ा बदलाव महसूस होना चाहिए।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला से यह समझने का प्रयास कियाकि अंतरिक्ष यात्री इस परिवर्तन को कैसे समझते हैं और किस प्रकार उसका अनुभव करते हैं। प्रधानमंत्री के जिज्ञासु प्रश्नों के उत्तर देते हुए शुभांशु शुक्ला ने कहाकि अंतरिक्ष का वातावरण एकदम अलग होता है, जिसमें गुरुत्वाकर्षण का अभाव प्रमुख कारक है। प्रधानमंत्री ने उनसे पूछाकि क्या अंतरिक्ष यात्रा के दौरान बैठने की व्यवस्था एक जैसी रहती है तो शुभांशु शुक्ला ने इसकी पुष्टि करते हुए कहाकि जी हां, यह एक जैसीही रहती है। प्रधानमंत्री ने कहाकि अंतरिक्ष यात्रियों को एकही प्रकार की व्यवस्था में 23-24 घंटे बिताने पड़ते हैं, शुभांशु शुक्ला ने इस बारेमें बतायाकि अंतरिक्ष में पहुंचने केबाद अंतरिक्ष यात्री अपनी सीटों से उठ सकते हैं और यात्रा केलिए पहने गए विशेष सूट से बाहर आ सकते हैं तथा वे कैप्सूल के भीतर खुलकर घूम सकते हैं। प्रधानमंत्री ने अंतरिक्ष यात्रा के शारीरिक और मनोवैज्ञानिक प्रभावों की चर्चा करते हुए शुभांशु शुक्ला से पूछाकि क्या कैप्सूल में पर्याप्त जगह होती है तो शुभांशु शुक्ला ने बतायाकि हालांकि वह बहुत विशाल स्थान नहीं था फिरभी वहां कुछ जगह अवश्य उपलब्ध थी। प्रधानमंत्री ने कहाकि यह कैप्सूल तो लड़ाकू विमान के कॉकपिट से भी ज़्यादा आरामदायक लग रहा था तो शुभांशु शुक्ला ने कहाकि यह तो उससे भी बेहतर है, सर। उन्होंने प्रधानमंत्री को अंतरिक्ष में पहुंचने केबाद होनेवाले शारीरिक परिवर्तनों के बारेमें जानकारी दी।
अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला ने प्रधानमंत्री को बतायाकि वहां पर हृदयगति अत्यंत धीमी हो जाती है और शरीर वहां की परिस्थितियों में कई प्रकार से स्वयं को समायोजित करता है, हालांकि चार से पांच दिन में शरीर अंतरिक्ष के माहौल में ढल जाता है और वहां की स्थिति के अनुकूल हो जाता है। शुभांशु शुक्ला ने बतायाकि पृथ्वी पर लौटने केबाद शरीर में पुनः उसी तरह के बदलाव आते हैं, इसके कारण किसीकी फिटनेस का स्तर चाहे जोभी हो, लेकिन, शुरुआत में चलना-फिरना मुश्किल हो सकता है। उन्होंने अपना व्यक्तिगत अनुभव साझा करते हुए कहाकि हालांकि उन्हें सबकुछ ठीक लग रहा था, लेकिन पहले कदम उठाते समय वे लड़खड़ा गए और उन्हें दूसरों का सहारा लेना पड़ा। इसका अर्थ यह हुआकि भलेही कोई चलना जानता हो, लेकिन मस्तिष्क को नए वातावरण को समझने और उसके अनुरूप ढलने में समय लगता है। प्रधानमंत्री ने कहाकि अंतरिक्ष यात्रा केलिए न केवल शारीरिक प्रशिक्षण, बल्कि मानसिक अनुकूलन भी आवश्यक है। शुभांशु शुक्ला ने इस बात पर सहमति व्यक्त कीकि जहां शरीर और मांसपेशियों में ताकत होती है, वहीं मस्तिष्क को नए वातावरण को समझने और सामान्य रूपसे चलने और कार्य करने के आवश्यक प्रयास केलिए स्वयं को पुनः समायोजित करने में फिरसे स्थिति के अनुसार बदलने की आवश्यकता पड़ती है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुभांशु शुक्ला से अंतरिक्ष अभियानों की अवधि केबारे में चर्चा करते हुए अंतरिक्ष यात्रियों की ओर से अंतरिक्ष में गुजारे गए सबसे लंबे समय के बारेमें जानकारी ली। शुभांशु शुक्ला ने बतायाकि अभी लोग एकबार में आठ महीने तक अंतरिक्ष में रहने लगे हैं, जो इस मिशन केलिए मील का पत्थर साबित हुआ है। नरेंद्र मोदी ने शुभांशु शुक्ला से उन अंतरिक्ष यात्रियों केबारे में भी पूछा, जो उनके मिशन के दौरान मिले थे। शुभांशु शुक्ला ने प्रधानमंत्री को बतायाकि उनमें से कुछ दिसंबर में वापस आने वाले हैं। नरेंद्र मोदी ने अंतरिक्ष केंद्र पर मूंग और मेथी उगाने के शुभांशु शुक्ला के प्रयोगों के बारेमें भी जानकारी मांगी। शुभांशु शुक्ला ने आश्चर्य व्यक्त कियाकि बहुत से लोग कुछ घटनाओं से अनभिज्ञ थे। उन्होंने उल्लेख कियाकि सीमित स्थान और सामग्री भेजने में होनेवाले महंगे खर्च के कारण अंतरिक्ष स्टेशनों पर भोजन की व्यवस्था बड़ी चुनौती बनी हुई है, इसलिए कम से कम जगह में अधिकतम कैलोरी और पोषण वाली सामग्री भेजने पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। उन्होंने बतायाकि अब विभिन्न प्रयोग चल रहे हैं और अंतरिक्ष में कुछ खाद्य पदार्थ उगाना उल्लेखनीय रूपसे सरल है। शुभांशु शुक्ला ने अंतरिक्ष केंद्र पर स्वयं एक ऐसा प्रयोग देखा, जिसमें छोटे से बर्तन और थोड़े से जल जैसे न्यूनतम संसाधनों का उपयोग करके आठ दिन के भीतर बीज से अंकुर निकलने लगे।
शुभांशु शुक्ला ने कहाकि भारत के अनूठे कृषि नवाचार अब सूक्ष्म गुरुत्व वाले अनुसंधान प्लेटफार्मों तक पहुंच रहे हैं, इन प्रयोगों से खाद्य सुरक्षा संबंधी चुनौतियों का समाधान करने केलिए हासिल होनेवाली क्षमता का उल्लेख किया, जो न केवल अंतरिक्ष यात्रियों, बल्कि पृथ्वी पर वंचित आबादी केलिए भी लाभदायक होगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुभांशु शुक्ला से पूछाकि किसी भारतीय अंतरिक्ष यात्री से मिलने पर दूसरे देशों के अंतरिक्ष यात्रियों की क्या प्रतिक्रिया होती है? शुभांशु शुक्ला ने बतायाकि पिछले एकवर्ष में वे जहां भी गए हैं, वहां लोग उनसे मिलकर सचमुच काफी प्रसन्न और उत्साहित हुए हैं और वे अक्सर भारत की अंतरिक्ष गतिविधियों के बारेमें उनसे पूछते थे और भारत की प्रगति के बारेमें अच्छी तरह से जानते थे। शुभांशु शुक्ला ने बतायाकि कई लोग गगनयान मिशन को लेकर ख़ासे उत्साहित थे और इसकी समयसीमा के बारेमें पूछताछ कर रहे थे, उनके साथियों ने तो उनसे हस्ताक्षरित नोट भी देने का आग्रह किया और लॉंच में आमंत्रित होने तथा भारत के अंतरिक्ष यान में यात्रा करने की इच्छा व्यक्त की है। नरेंद्र मोदी ने शुभांशु शुक्ला से पूछाकि दूसरे लोग शुभांशु शुक्ला को जीनियस क्यों कहते हैं? शुभांशु शुक्ला ने उत्तर दियाकि लोग अपनी टिप्पणियों में उनके प्रति काफी उदार हैं। उन्होंने अपनी प्रशंसा का श्रेय पहले भारतीय वायुसेना और फिर अंतरिक्षयान के पायलट के रूपमें अपने कठोर प्रशिक्षण को दिया। शुभांशु शुक्ला ने बतायाकि उनको प्रारंभ में ऐसा लगाकि इसमें अकादमिक अध्ययन बहुत कम होगा, लेकिन बादमें उन्हें एहसास हुआकि इस मार्ग में आगे बढ़ने केलिए व्यापक अध्ययन की आवश्यकता है।
शुभांशु शुक्ला ने बतायाकि अंतरिक्षयान का पायलट बनना इंजीनियरिंग के किसी विषय में महारत हासिल करने जैसा है, उन्होंने भारतीय वैज्ञानिकों से कई वर्ष तक प्रशिक्षण लिया और इसके बाद उन्हें महसूस हुआकि वे मिशन केलिए पूरी तरह तैयार हैं। प्रधानमंत्री ने शुभांशु शुक्ला को दिए गए होमवर्क की प्रगति कीभी समीक्षा की। शुभांशु शुक्ला ने बतायाकि उनकी प्रगति उत्कृष्ट रही है, वास्तव में उन्हें दिया गया कार्य बहुत महत्वपूर्ण था। उन्होंने कहाकि उनकी यात्रा का उद्देश्य जागरुकता पैदा करना था। उन्होंने कहाकि उनका मिशन सफल रहा और उनका दल सुरक्षित लौट आया, लेकिन इसे अंत नहीं समझा जाए, यहतो बस शुरुआत थी। प्रधानमंत्री ने दोहरायाकि यह उनका पहला कदम था, शुभांशु शुक्ला ने भी यही कहा, जीहां यह पहला कदम है। शुभांशु शुक्ला ने कहाकि इस पहल का मुख्य उद्देश्य अधिक से अधिक सीखना और वहां हासिल जानकारियों को धरती पर वापस लाना था। प्रधानमंत्री ने भारत में अंतरिक्ष यात्रियों का बड़ा समूह बनाने की आवश्यकता बतलाई और सुझाव दियाकि ऐसे मिशनों केलिए 40-50 व्यक्ति तैयार होने चाहिएं। उन्होंने कहाकि अबतक बहुत कम बच्चों ने अंतरिक्ष यात्री बनने केबारे में सोचा होगा, लेकिन शुभांशु शुक्ला की यात्रा संभवतः इस दिशा में बढ़ने केलिए अधिक विश्वास और दिलचस्पी केलिए प्रेरित करेगी। शुभांशु शुक्ला ने प्रधानमंत्री को अपने बचपन के बारेमें बताते हुए कहाकि 1984 में जब राकेश शर्मा अंतरिक्ष यात्रा पर गए थे तो किसी राष्ट्रीय कार्यक्रम के अभाव के कारण उनके मन में अंतरिक्ष यात्री बनने का विचार नहीं आया था। हालांकि अपने हालिया मिशन के दौरान उन्होंने एकबार लाइव कार्यक्रम के ज़रिए और दो बार रेडियो के ज़रिए तीन अवसरों पर बच्चों से बातचीत की। हर कार्यक्रम में कम से कम एक बच्चे ने उनसे यह जरूर पूछाकि सर मैं अंतरिक्ष यात्री कैसे बन सकता हूं?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहाकि भारत के समक्ष अब दो बड़े मिशन हैं-अपना अंतरिक्ष केंद्र और गगनयान। उन्होंने कहाकि शुभांशु शुक्ला का अनुभव इन आगामी प्रयासों में अत्यंत उपयोगी होगा। शुभांशु शुक्ला ने इसपर सकारात्मक प्रतिक्रिया देते हुए कहाकि खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार की निरंतर प्रतिबद्धता को देखते हुए यह भारत केलिए एक बड़ा अवसर है। उन्होंने बतायाकि चंद्रयान-2 की असफलता जैसी घटनाओं के बावजूद सरकार ने निरंतर बजट के जरिए अंतरिक्ष कार्यक्रम को समर्थन देना जारी रखा, जिससे चंद्रयान-3 की सफलता सुनिश्चित हुई। उन्होंने कहाकि असफलताओं केबाद भी इस तरह के सहयोग और समर्थन को पूरा विश्व देख रहा है और यह अंतरिक्ष के क्षेत्रमें भारत की मजबूत क्षमता और स्थिति को दर्शाता है। शुभांशु शुक्ला ने कहाकि भारत इस क्षेत्रमें नेतृत्व की भूमिका निभा सकता है और भारत के नेतृत्व में अन्य देशों की भागीदारी केसाथ बनने वाला अंतरिक्ष स्टेशन इस क्षेत्रमें आगामी कार्यक्रमों केलिए शक्तिशाली उपकरण बनेगा। शुभांशु शुक्ला ने स्वतंत्रता दिवस पर अंतरिक्ष संबंधी विनिर्माण में आत्मनिर्भरता पर प्रधानमंत्री की टिप्पणी का उल्लेख किया और कहाकि गगनयान, अंतरिक्ष केंद्र और चंद्रमा पर उतरने का दृष्टिकोण, ये सभी तत्व आपस में जुड़े हुए हैं और मिलकर एक विशाल व महत्वाकांक्षी स्वप्न का निर्माण करते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहाकि यदि भारत आत्मनिर्भरता केसाथ इन लक्ष्यों को पाने केलिए प्रयास करेगा तो अवश्य सफल होगा।