दीर्घकालिक शहरी योजना का विस्तार 30 से 50 साल तक जरूरीस्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम
Friday 6 September 2013 10:18:27 AM
नई दिल्ली। शहरी विकास मंत्री और संसदीय कार्य मंत्री कमलनाथ ने कहा है कि देश में बुनियादी सुविधाओं की व्यापक कमी है और इस कमी को पूरा करने के लिए लगभग 1.2 खरब अमरीकी डालर की आवश्यकता है। वे मंगलवार को दिल्ली में शहरी और क्षेत्रीय योजना पर भारत और डच संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे। सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) की जरूरत पर बल देते हुए शहरी विकास मंत्री ने कहा कि 12वीं योजना में कुल बुनियादी सुविधाओं की जरूरत का 25 प्रतिशत पीपीपी के माध्यम से पूरा किया जाएगा। वर्तमान में पीपीपी मॉडल पानी की आपूर्ति, ठोस कचरा प्रबंधन और अन्य में लागू किया जा रहा है, लेकिन भविष्य में पीपीपी का दायरा बढ़ाया जाएगा।
शहरी परियोजनाओं की डिजाइन में लोगों की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए कमलनाथ ने कहा कि जहां तक शहरी विकास का सवाल है तो पीपीपीपी यानी, जन निजी सार्वजनिक भागीदारी भविष्य के लिए एक मंत्र है। शहरी योजना मौजूदा 10-20 साल की तुलना में कम से कम 30-50 साल तक की दीर्घावधि तक विस्तारित की जानी चाहिए। अल्पावधि योजनाएं दीर्घावधि योजनाओं का अहम हिस्सा होनी चाहिएं और अल्पावधि योजनाओं की परिस्थितियों और आवश्यकताओं को समायोजित करने के लिए बार-बार समीक्षा होनी चाहिए।
नीदरलैंड की अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और विकास सहयोग मंत्री लिलियन प्लोमेन ने कहा कि स्थानिक योजना, परिवहन, जल प्रबंधन और ऊर्जा के अक्षय स्रोत सभी को प्रभावी शहरी विकास के लिए एक साथ जोड़ दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में नीदरलैंड के सदियों के अनुभव को भारत भविष्य के लिए अपने शहरों के विकास के लिए इस्तेमाल कर सकता है। शहरी विकास सचिव डॉ सुधीर कृष्णा ने भूमि उपयोग और स्थानिक योजना दोनों बुनियादी सुविधाओं के संदर्भ में योजना बनाने की आवश्यकता पर बल दिया।
कार्यशाला का उद्देश्य दीर्घकालीन योजनाओं को शुरू करने के लिए दिशा-निर्देश, मानदंड तैयार करने के संबंध में कार्रवाई के लिए एक एजेंडा विकसित करना था। इस उद्देश्य की प्राप्ति के बिंदु हैं-ज्ञान नेटवर्क को बढ़ावा देना और महत्वपूर्ण रणनीतिक भागीदारों के बीच सर्वोत्तम क्रियाओं का विभाजन, शहर नियोजकों, शहरी स्थानीय निकायों, राज्य टीसीडीपी और निजी कंपनियों सहित अन्य विभागों की संवेदनशीलता, कार्यान्वयन शुरू करने के लिए व्यवहार्य पीपीपी को बढ़ावा देना।