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Thursday 22 May 2025 01:34:09 PM
करवार (कर्नाटक)। भारतीय नौसेना ने प्राचीन सिले हुए जहाज को नौसेना बेड़े में शामिल कर लिया है और उसे आईएनएसवी कौंडिन्य नाम दिया है। गौरतलब हैकि कौंडिन्य एक महान भारतीय नाविक थे, जिन्होंने हिंद महासागर को पार करके दक्षिण पूर्व एशिया की यात्रा की थी, उन्हीं के नामपर जहाज का नाम रखा गया है। केंद्रीय संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने नौसेना बेस करवार में इस समारोह की अध्यक्षता की, जो भारत की समृद्ध जहाज निर्माण विरासत का जश्न मनाने वाली एक असाधारण परियोजना के समापन का प्रतीक था। पांचवीं शताब्दी की अजंता पेंटिंग से पुनर्निर्मित जहाज को चौकोर पाल और स्टीयरिंग ओर्स केसाथ सिलाई की प्राचीन तकनीक का उपयोग करके बनाया गया है। इस परियोजना की शुरुआत संस्कृति मंत्रालय, भारतीय नौसेना और मेसर्स होदी इनोवेशन केबीच जुलाई 2023 में हस्ताक्षरित एक त्रिपक्षीय समझौते के माध्यम से की गई थी, जिसमें संस्कृति मंत्रालय से वित्त पोषण प्राप्त हुआ था।
आईएनएसवी कौंडिन्य का निर्माण केरल के कुशल कारीगरों की एक टीम ने सिलाई की पारंपरिक विधि का उपयोग करके किया और इसके निर्माण कार्य का नेतृत्व मास्टर शिपराइट बाबू शंकरन ने किया। कई महीनों तक टीम ने कॉयर रस्सी, नारियल फाइबर और प्राकृतिक राल का उपयोग करके जहाज के पतवार पर लकड़ी के तख्तों को बड़ी मेहनत से सिल दिया। इसको फरवरी 2025 में गोवा में लॉंच किया गया था। भारतीय नौसेना ने इसमें केंद्रीय भूमिका निभाई और इसकी डिजाइन, तकनीकी सत्यापन और निर्माण प्रक्रिया की देखरेख की। ऐसे जहाजों के कोई बचे हुए ब्लूप्रिंट न होने के कारण डिजाइन को प्रतीकात्मक स्रोतों से अनुमान लगाया जाना था। नौसेना ने जहाज निर्माता केसाथ मिलकर पतवार के आकार व पारंपरिक रिगिंग को फिरसे बनाया और डिजाइन को समुद्री इंजीनियरिंग विभाग, आईआईटी मद्रास में हाइड्रोडायनामिक मॉडल परीक्षण और आंतरिक तकनीकी मूल्यांकन के माध्यम से मान्य किया गया।
आईएनएसवी कौंडिन्य में सांस्कृतिक रूपसे महत्वपूर्ण कई विशेषताएं शामिल हैं, इसके पालों पर गंडभेरुंड और सूर्य की आकृतियां दिखाई देती हैं, इसके धनुष पर एक गढ़ा हुआ सिंह यली है और एक प्रतीकात्मक हड़प्पा शैली के पत्थर का लंगर इसके डेक को सुशोभित करता है। जहाज का हर तत्व प्राचीन भारत की समृद्ध समुद्री परंपराओं को दर्शाता है। यह जहाज समुद्री अन्वेषण, व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान की भारत की दीर्घकालिक परंपराओं का एक मूर्त प्रतीक है। भारतीय नौसेना के नौवहन पोत के रूपमें शामिल कौंडिन्य कारवार में तैनात रहेगा। यह जहाज अब अपने अगले ऐतिहासिक चरण में प्रवेश करेगा, जिसमें गुजरात से ओमान तक प्राचीन व्यापार मार्ग केसाथ महासागरीय यात्रा की तैयारी शामिल है, जो इसवर्ष के अंत में निर्धारित है। कारवार नौसेना बेस में युद्धपोत उत्पादन और अधिग्रहण नियंत्रक वाइस एडमिरल राजाराम स्वामीनाथन और फ्लैग ऑफिसर कर्नाटक नौसेना क्षेत्र के रियर एडमिरल केएम रामकृष्णन और वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।