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Sunday 4 May 2025 01:11:48 PM
नई दिल्ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने भारतीय मध्यस्थता एसोसिएशन के नई दिल्ली में आयोजित प्रथम राष्ट्रीय मध्यस्थता सम्मेलन में कहा हैकि मध्यस्थता कानून-2023 सभ्यतागत विरासत को मजबूत करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है, अब हमें इसमें गति लाने और इस कार्यप्रणाली को मजबूत करने की आवश्यकता है। राष्ट्रपति ने कहाकि मध्यस्थता न्याय प्रदान करने का एक अनिवार्य हिस्सा है, जो भारत के संविधान के संस्थापक पाठ के मूल में भी है। राष्ट्रपति ने कहाकि हमें विवादों और संघर्षों के प्रभावी समाधान को केवल कानूनी आवश्यकता नहीं, बल्कि सामाजिक अनिवार्यता के रूपमें भी देखना चाहिए। उन्होंने कहाकि मध्यस्थता संवाद, समझ और सहयोग को बढ़ावा देती है, ये मूल्य एक सामंजस्यपूर्ण और प्रगतिशील राष्ट्र के निर्माण केलिए जरूरी हैं, इससे संघर्ष प्रतिरोधी, समावेशी और सामंजस्यपूर्ण समाज का उदय होगा।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने जोर देकर कहाकि मध्यस्थता कानून केतहत विवाद समाधान तंत्र का ग्रामीण क्षेत्रों तक प्रभावी तरीके से विस्तार किया जाना चाहिए, ताकि पंचायतों को गांवों में विवादों में मध्यस्थता करने तथा उन्हें सुलझाने केलिए कानूनी रूपसे सशक्त बनाया जा सके। उन्होंने कहाकि गांवों में सामाजिक सद्भाव राष्ट्र को मजबूत बनाने की एक अनिवार्य शर्त है और मध्यस्थता न केवल विचाराधीन विशिष्ट मामले, बल्कि अन्य मामलों में भी न्याय प्रदान करने में तेज़ी ला सकती है, क्योंकि इससे अदालतों पर बड़ी संख्या में मुकद्मों का बोझ कम हो जाता है। राष्ट्रपति ने कहाकि मध्यस्थता समग्र न्यायिक प्रणाली को और अधिक कुशल बना सकती है, इस प्रकार यह विकास के उन मार्गों को खोल सकती है, जो अवरुद्ध हो सकते हैं, यह कारोबार में सुगमता और जीवन में सुगमता दोनों को बढ़ा सकती है। उन्होंने कहाकि जब हम इसे इस तरह से देखते हैं तो मध्यस्थता 2047 तक विकसित भारत की कल्पना को साकार करने का एक महत्वपूर्ण जरिया बन जाती है।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने कहाकि भारत में न्यायिक तंत्र की एक लंबी और समृद्ध परंपरा है, जिसमें अदालत के बाहर समझौता अपवाद से अधिक एक आदर्श था। उन्होंने जिक्र कियाकि पंचायती संस्थाएं सौहार्दपूर्ण समाधान को बढ़ावा देने केलिए प्रसिद्ध रही हैं, पंचायत का प्रयास न केवल विवाद को हल करना था, बल्कि इसके बारे में पक्षों केबीच किसीभी कड़वाहट को दूर करना भी था। राष्ट्रपति ने उल्लेख कियाकि यह हमारे लिए सामाजिक सद्भाव का एक स्तंभ था, दुर्भाग्य से औपनिवेशिक शासकों ने इस अनुकरणीय विरासत को नज़रअंदाज कर दिया, जब उन्होंने हमपर एक विदेशी कानूनी प्रणाली थोपी, जबकि नई प्रणाली में मध्यस्थता और अदालत के बाहर समाधान का प्रावधान था और वैकल्पिक तंत्र की पुरानी परंपरा जारी रही, इसके लिए कोई संस्थागत ढांचा नहीं था।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने कहाकि प्रथम राष्ट्रीय मध्यस्थता सम्मेलन महज औपचारिक आयोजन नहीं है, यह एक आह्वान है, मध्यस्थता कानून-2023 में कई प्रावधान हैं, जो भारत में एक जीवंत और प्रभावी मध्यस्थता इकोसिस्टम की नींव रखेंगे। उन्होंने कहाकि यह हम सभीसे विश्वास को बढ़ावा देकर, पेशेवर क्षमताओं का निर्माण करके और समाज के सभी वर्गों में हर नागरिक केलिए मध्यस्थता को सुलभ बनाकर भारत में मध्यस्थता के भविष्य को सामूहिक रूपसे आकार देने का आह्वान करता है। उन्होंने कहाकि भारतीय मध्यस्थता एसोसिएशन की स्थापना इस विरासत को भविष्य में ले जानेकी दिशामें एक महत्वपूर्ण कदम है, यह विवाद समाधान के एक पसंदीदा, संरचित और व्यापक रूपसे सुलभ तरीके के रूपमें मध्यस्थता को संस्थागत बनाता है और बढ़ावा देता है।