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Wednesday 25 June 2025 05:54:28 PM
नैनीताल। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने आपातकाल की तुलना एक भूकंप से की है, लोकतंत्र को नष्ट कर देने वाला भूकंप। उपराष्ट्रपति आज कुमाऊँ विश्वविद्यालय नैनीताल के स्वर्ण जयंती समारोह को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहाकि पचास वर्ष पहले इसी दिन यानी 25 जून को विश्व का सबसे पुराना, सबसे बड़ा और अब सबसे जीवंत लोकतंत्र एक गंभीर संकट से गुज़रा, यह संकट अप्रत्याशित था, लोकतंत्र को नष्ट कर देने वाला एक भूकंप। देश पर आपातकाल थोपना। वह रात अंधेरी थी, कैबिनेट को किनारे कर दिया गया था। उन्होंने कहाकि उस समय की प्रधानमंत्री, जो उच्च न्यायालय के एक प्रतिकूल निर्णय का सामना कर रही थीं, ने पूरे राष्ट्र की उपेक्षाकर व्यक्तिगत हित केलिए देश में आपातकाल लगाने का निर्णय लिया और राष्ट्रपति ने भी संवैधानिक मूल्यों को कुचलते हुए आपातकाल की घोषणा पर हस्ताक्षर कर दिए, इसके बाद जो 21–22 महीने का कालखंड आया, वह लोकतंत्र केलिए अत्यंत अशांत और अकल्पनीय था, यह लोकतंत्र का सबसे अंधकारमय काल था।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहाकि एक लाख चालीस हजार लोगों को जेलों में डाल दिया गया था, उन्हें न्याय प्रणाली तक कोई पहुंच नहीं मिली, वे अपने मौलिक अधिकारों की रक्षा नहीं कर सके, नौ उच्च न्यायालयों ने साहस दिखाया और कहाकि आपातकाल हो या न हो, मौलिक अधिकार स्थगित नहीं किए जा सकते, हर नागरिक के पास न्यायिक हस्तक्षेप के ज़रिए अपने अधिकार प्राप्त करने का अधिकार है, दुर्भाग्यवश, सर्वोच्च न्यायालय, देश की सर्वोच्च अदालत धूमिल हो गई, उसने नौ उच्च न्यायालयों के निर्णयों को पलट दिया, उसने दो बातें तय कीं-आपातकाल की घोषणा कार्यपालिका का निर्णय है, यह न्यायिक समीक्षा के अधीन नहीं है और यह भीकि आपातकाल की अवधि भी कार्यपालिका ही तय करेगी, साथ ही नागरिकों के पास आपातकाल के दौरान कोई मौलिक अधिकार नहीं होंगे। उपराष्ट्रपति ने कहाकि यह जनता केलिए एक बड़ा झटका था। उन्होंने संविधान हत्या दिवस के महत्व को रेखांकित करते हुए कहाकि युवाओं को इस पर चिंतन करना चाहिए, क्योंकि जबतक वे इसके बारे में जानेंगे नहीं, समझेंगे नहीं कि वे बाद में कैसे इस देशके प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति बने? यही कारण हैकि युवाओं को जागरुक बनाना ज़रूरी है।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने संकाय के छात्रों से कहाकि वे लोकतंत्र और शासन व्यवस्था में सबसे महत्वपूर्ण भागीदार हैं, वे इस बात को भूल नहीं सकते और न ही इस अंधकारमय कालखंड से अनभिज्ञ रह सकते हैं। उन्होंने कहाकि बहुत सोच समझकर ही आजकी सरकार ने तय किया कि इस दिन को ‘संविधान हत्या दिवस’ के रूपमें मनाया जाएगा, यह सुनिश्चित करेगा कि ऐसा फिर कभी न हो। उन्होंने कहाकि संविधान हत्या दिवस उन दोषियों की पहचान का भी अवसर होगा, जिन्होंने मानवीय अधिकारों, संविधान की आत्मा और भाव को कुचला, वे कौन थे? उन्होंने ऐसा क्यों किया? और सर्वोच्च न्यायालय में भी मेरे मित्र सहमत होंगेकि एक न्यायाधीश एचआर खन्ना ने असहमति जताई थी, और अमेरिका के एक प्रमुख समाचारपत्र ने टिप्पणी की थीकि जब भारत में फिर से लोकतंत्र लौटेगा, तो एचआर खन्ना केलिए अवश्य एक स्मारक बनेगा, जिन्होंने अपने मूल्यों से समझौता नहीं किया। जगदीप धनखड़ ने विश्वविद्यालय परिसर आधारित शिक्षा की भूमिका पर ज़ोर देते हुए कहाकि शैक्षणिक संस्थान केवल डिग्रियां या प्रमाणपत्र प्राप्त करने के स्थान नहीं हैं, अन्यथा वर्चुअल लर्निंग और परिसर आधारित लर्निंग में अंतर क्यों होता?
जगदीप धनखड़ ने छात्रों से कहाकि वे जानते हैंकि उनके साथियों केसाथ बिताया गया समय, उनके सोचने के तरीके को परिभाषित करता है, ये स्थान वह परिवर्तन उत्पन्न करने केलिए है, जिसकी आवश्यकता है, जो परिवर्तन आप चाहते हैं, जो राष्ट्र आप चाहते हैं, ये विचार और नवाचार के स्वाभाविक जैविक स्थल हैं, विचार आते हैं, लेकिन विचारों पर विचार होना भी ज़रूरी है। उन्होंने कहाकि अगर कोई विचार असफलता के डर से आता है, तो आप उसमें नवाचार या प्रयोग नहीं करते, तब हमारी प्रगति रुक जाती है, ये वे स्थान हैं, जहां दुनिया हमारे युवाओं से ईर्ष्या करती है, क्योंकि उनके पास न केवल अपना भविष्य गढ़ने का अवसर है, बल्कि भारत की नियति गढ़ने का भी और इसलिए कृपया आगे बढ़िए! उन्होंने उल्लेख कियाकि एक कॉर्पोरेट उत्पाद की टैगलाइन है जिसे आप जानते होंगे-‘Just do it’। क्या मैं सही हूं? मैं उसमें एक और जोड़ना चाहूंगा-‘Do it now’। उपराष्ट्रपति ने पूर्व छात्रों और उनके योगदान के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने कहाकि इन 50 वर्ष में आपके पास बड़ी संख्या में पूर्व छात्र हैं, किसी संस्थान के पूर्व छात्र उसके लिए अत्यंत महत्वपूर्ण घटक होते हैं।
जगदीप धनखड़ ने कहाकि आप सोशल मीडिया या गूगल पर देखिए कि कई विकसित देशों के संस्थानों के पास 10 अरब डॉलर से अधिक का पूर्व छात्र फंड है, किसी के पास तो 50 अरब डॉलर से अधिक का भी है। जगदीप धनखड़ ने कहाकि यह कोई एक बार में नहीं आता, यह बूंद-बूंद से जमा होता है, यदि इस महान संस्थान के 1,00,000 पूर्व छात्र हर साल केवल ₹10,000 का योगदान करें, तो सालाना राशि 100 करोड़ रुपये होगी और सोचिए अगर यह हर साल होता रहे, तो आपको कहीं और देखने की आवश्यकता नहीं होगी, आप आत्मनिर्भर होंगे, ऐसा करना आपको संतोष देगा, पूर्व छात्र अपने अल्मा मेटर से जुड़ सकेंगे, वे आपको मार्गदर्शन देंगे, वो आपको संभालेंगे। उन्होंने कहाकि इसलिए मैं आग्रह करता हूंकि देवभूमि से पूर्व छात्र संघ की शुरुआत हो। समारोह में उत्तराखंड के राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह, उत्तराखंड सरकार की मंत्री रेखा आर्या, सांसद (लोकसभा) अजय भट्ट और छात्र-शिक्षक एवं संकाय सदस्य उपस्थित थे।