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आईजीएनसीए में राज कपूर शताब्दी समारोह

राज कपूर मनोरंजनकर्ता से कहीं ज़्यादा भारत का नैतिक दर्पण!

थीम है-'शब्दांजलि: राज कपूर-द आइडिया ऑफ शोमैनशिप'

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Tuesday 3 June 2025 03:30:04 PM

raj kapoor centenary celebrations at ignca

नई दिल्ली। भारतीय हिंदी सिनेमाजगत के सुप्रसिद्ध अभिनेता, निर्माता और निर्देशक राज कपूर का इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में रेस्पेक्ट इंडिया दिल्ली की थीम 'शब्दांजलि: राज कपूर-द आइडिया ऑफ शोमैनशिप' पर भव्य शताब्दी समारोह आयोजित किया गया। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सदस्य सचिव डॉ सच्चिदानंद जोशी ने समारोह में कहाकि राज कपूर केवल एक फिल्म निर्माता नहीं थे, वे सेल्युलाइड पर लिखी गई भारत की भावनात्मक आत्मकथा थे। डॉ सच्चिदानंद जोशी ने कहाकि इस कार्यक्रम केसाथ ही भारत के सबसे प्रतिष्ठित सिनेमाई कहानीकारों में से एक राज कपूर को सालभर दी जानेवाली राष्ट्रीय श्रद्धांजलि की औपचारिक शुरुआत हो चुकी है। उन्होंने कहाकि राज कपूर ने ‘बॉबी’ और ‘मेरा नाम जोकर’ जैसी फिल्मों के माध्यम से युवा पीढ़ी में एक जोश भर दिया था।
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सदस्य सचिव डॉ सच्चिदानंद जोशी ने सिनेमाजगत से जुड़े अपने अनुभवों को साझा करते हुए कहाकि अगर आप थिएटर में नहीं गए हैं या टिकट केलिए कुछ पैसे उधार नहीं लिए हैं तो आपने सिनेमा के जादू को सही मायने में नहीं जिया है और राज कपूर ने सिर्फ फिल्में नहीं बनाईं, उन्होंने मधुर विद्रोहों को प्रेरित किया और हम उन यादों को गर्व केसाथ लेकर चलते हैं। डॉ सच्चिदानंद जोशी ने कहाकि राज कपूर एक बेहतरीन मनोरंजनकर्ता से कहीं ज़्यादा युवा और उभरते भारत केलिए एक नैतिक दर्पण थे। डॉ सच्चिदानंद जोशी ने कहाकि उनकी फिल्में सिर्फ दृश्यात्मक प्रस्तुति न होकर एक नए स्वतंत्र राष्ट्र की भावनात्मक और नैतिक चिंताओं से जुड़ी गहन सांस्कृतिक पाठ्यसामग्री थीं। उन्होंने कहाकि जैसे-जैसे भारत औपनिवेशिक शासन की छाया से बाहर निकला राज कपूर ने एक सिनेमाई शब्दावली पेश की। उन्होंने कहाकि जब भारत आज़ाद हुआ तो राज कपूर ने फिल्म उद्योग केसाथ तालमेल बिठाने का इंतज़ार नहीं किया, सिर्फ तीन वर्ष में उन्होंने 'आग', 'बरसात' और 'आवारा' जैसी शानदार फिल्में दीं, जब सिनेमाई भाषा अभी बन ही रही थी।
डॉ सच्चिदानंद जोशी ने कहाकि राज कपूर की फिल्मों ने मनोरंजन और ज्ञानोदय केबीच की रेखाओं को धुंधला कर दिया और एक राष्ट्र की सामूहिक मानसिकता को आकार दिया। आईआरएस तथा संस्कृति मंत्रालय की अपर सचिव निरुपमा कोटरू ने राज कपूर की फिल्मों की गहरी सामाजिक प्रतिध्वनि पर प्रकाश डालते हुए कहाकि यह उनकी प्रतिभा थीकि उन्होंने सहायक के रूपमें अपने शुरुआती दिनों में भी इतनी गहरी चिंतनशील फिल्में बनाईं। उन्होंने कहाकि 'बूट पॉलिश', 'जागते रहो' और 'बावरे' जैसी फिल्मों ने हाशिए पर पड़े लोगों केप्रति उनकी करुणा को दर्शाया, उनकी कहानी कहने की शक्ति सिनेमा हॉल से कहीं आगे तक फैली हुई थी। निरुपमा कोटरू ने उल्लेख कियाकि राज कपूर के आख्यानों का प्रभाव ऐसा थाकि 1970 के दशक में भारत में डकैतों ने उनकी फिल्मों में दिखाए गए मुक्ति के सफर से प्रभावित होकर आत्मसमर्पण करना शुरू कर दिया था।
संस्कृति मंत्रालय की अपर सचिव निरुपमा कोटरू ने एक निजी किस्से को याद करते हुए बतायाकि एक भारतीय डॉक्टर ने अफ्रीका में एक मरीज का ऑपरेशन किया, यह जानने परकि डॉक्टर भारत से था, मरीज खुश हो गया और बोला 'राज कपूर का भारत!' यह प्रसंग यह बताने केलिए काफी हैकि दुनिया की कल्पना में वे कितने गहराई से समाए हुए थे। सिक्किम के राज्यपाल रहे बीपी सिंह ने राज कपूर के शताब्दी समारोह की अध्यक्षता करते हुए लोकप्रिय सिनेमा के माध्यम से नैतिक गहराई को प्रसारित करने की राज कपूर की दुर्लभ क्षमताओं की सराहना की और उन्हें सिनेमा के माध्यम से नैतिक दिशा देनेवाले व्यक्ति के रूपमें वर्णित किया। सांसद और स्वयं एक अभिनेता के रूपमें मनोज तिवारी ने राज कपूर को एक पीढ़ी की सिनेमाई अंतरात्मा के रूपमें वर्णित किया और कहाकि उनकी विरासत प्रेम, गरिमा और सामाजिक न्याय की निरंतर खोज में निहित है। आर्थोपेडिक सर्जन पद्मश्री डॉ यश गुलाटी और अभिनेता मुकेश त्यागी ने राज कपूर के सिनेमा के स्थायी मानवतावाद को रेखांकित करते हुए उन्हें व्यक्तिगत रूपसे श्रद्धांजलि दी।
रेस्पेक्ट इंडिया के अध्यक्ष डॉ निर्मल गहलोत ने कहाकि राज कपूर का शताब्दी समारोह एक ऐसे कलाकार केप्रति कृतज्ञता का राष्ट्रीय क्षण है, जिसने भारत को स्क्रीन पर एक आत्मा दी। राज कपूर शताब्दी समारोह 2025 के अंततक जारी रहेगा, इसके लिए व्याख्यान, सांस्कृतिक कार्यक्रम और भारत एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तरपर प्रदर्शनियों की योजना बनाई गई है। रेस्पेक्ट इंडिया का उद्देश्य राज कपूर को नई पीढ़ियों के सामने फिरसे पेश करना है, न केवल एक महान फिल्म निर्माता के रूपमें, बल्कि एक मानवीय दूरदर्शी के रूपमें, जिन्होंने मानव सभ्यता की नैतिक अंतरात्मा से जोड़ने के अनुकरणीय प्रयास किए।

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