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भगवान महावीर के सिद्धांतों पर ज्ञानवर्धक चर्चा

'संवाद से समाधान' दार्शनिक नहीं, बल्कि व्यावहारिक व आवश्यक'

सामाजिक संस्कृति में संवाद टकराव से श्रेष्ठ है-स्पीकर ओम बिरला

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Tuesday 24 June 2025 12:08:56 PM

om birla

मुंबई। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने मुंबई में 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी के कालजयी सिद्धांतों पर महावीरायतन फाउंडेशन के ‘संवाद से समाधान’ एक ज्ञानपूर्ण परिचर्चा कार्यक्रम में समकालीन चुनौतियों के समाधान में संवाद, शांति और लोकतांत्रिक मूल्यों के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने कहाकि सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान और सम्यक चरित्र केसाथ किया गया संवाद हर समस्या का समाधान है। उन्होंने कहाकि जब हम एक-दूसरे को सुनते हैं, समझते हैं और सम्मानपूर्वक अपने मत व्यक्त करते हैं, तभी वास्तविक समाधान जन्म लेते हैं। उन्होंने कहाकि यह अवधारणा हमारे लोकतंत्र को भी खूबसूरत बनाती है, जहां चर्चा और संवाद के जरिए बड़ी से बड़ी चुनौतियों का हल निकाला जाता है। ओम बिरला ने कहाकि हमारी सामाजिक संस्कृति में संवाद को टकराव से श्रेष्ठ माना गया है, ऐसे समय में जब विभिन्न देशों केबीच युद्ध और ध्रुवीकरण बढ़ रहा है, भारत 'संवाद' को समाधान का सेतु मानता है।
लोकसभा अध्यक्ष ने भगवान महावीर की शिक्षाओं की स्थायी प्रासंगिकता का उल्लेख किया और कहाकि 2500 साल पहले दिया गया भगवान महावीर का संदेश आजभी समाज में गहराई से गूंजता है, अहिंसा, करुणा और आत्मानुशासन के उनके सिद्धांत आधुनिक समय के संघर्षों से निपटने में लोगों का मार्गदर्शन करते हैं। ओम बिरला ने कहाकि भगवान महावीर की शिक्षा केवल धार्मिक सिद्धांत न होकर एक समग्र जीवनशैली है, जो सद्भाव, आत्मनिरीक्षण और नैतिक आचरण को बढ़ावा देती है। समसामयिक मुद्दों की बात करते हुए उन्होंने कहाकि बढ़ते संघर्ष और अस्थिरता से ग्रस्त दुनिया में संवाद की प्रासंगिकता पहले से कहीं अधिक हो गई है। उन्होंने कहाकि हिंसा और टकराव हमारी समस्याओं का समाधान नहीं कर सकते, इसके बजाय आपसी सम्मान पर आधारित शांतिपूर्ण संवाद ही आगे बढ़ने का एकमात्र स्थायी रास्ता है, इसलिए ‘संवाद से समाधान’ का संदेश केवल दार्शनिक नहीं है, बल्कि अत्यंत व्यावहारिक और आवश्यक भी है। ओम बिरला ने कहाकि स्वतंत्रता भले ही 1947 में प्राप्त हुई थी, लेकिन भारत में लोकतंत्र सदियों से चला आ रहा है, भारत ने लोकतंत्र आयात नहीं किया, इसे आम सहमति, सार्वजनिक विमर्श और समुदाय के नेतृत्व वाले शासन की प्राचीन परंपराओं से विरासत में मिला और उसका पोषण किया गया। उन्होंने कहाकि स्वतंत्रता केबाद की चुनौतियों और अनिश्चितताओं के बावजूद भारत ने लोकतंत्र को अपनाने का साहसिक और दृढ़ निर्णय लिया।
ओम बिरला ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अक्सर व्यक्त कीगई धारणा का उल्लेख कियाकि लोकतंत्र भारत की आत्मा है। उन्होंने उस भावना की पुष्टि करते हुए कहाकि भारत में लोकतांत्रिक संस्थाएं चर्चा, सहयोग और समायोजन के मूलभूत सिद्धांतों पर बनी हैं। उन्होंने कहाकि भारत लोकतांत्रिक सफलता का प्रतीक है, दुनिया भारत को इस बातका जीवंत उदाहरण मानती हैकि जब लोकतंत्र को प्रतिबद्धता और समावेशिता केसाथ अपनाया जाता है तो यह प्रगति, स्थिरता और राष्ट्रीय एकता सुनिश्चित करता है। लोकसभा अध्यक्ष ने भारत की लोकतांत्रिक विरासत और भगवान महावीर जैसे आध्यात्मिक विचारकों के चिरस्थायी ज्ञान की सराहना करने का आह्वान किया। उन्होंने कहाकि दोनों परंपराएं-एक शासन में निहित और दूसरी नैतिक जीवन में क्लेश पर संवाद एवं संघर्ष के सामने करुणा पर जोर देती है। इस अवसर पर महाराष्ट्र विधानपरिषद के सभापति राम शिंदे, सांसद मिलिंद देवड़ा और गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।

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